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अपने ही बयानों में घिरी कांग्रेस


 

डॉ दिलीप अग्निहोत्री
आईपीएन।
चीन पर दिए गए बयान अब कांग्रेस पर भारी पड़ने लगे है। विपक्ष द्वारा सरकार की निंदा स्वभाविक है। लेकिन  राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विषय पर आत्मसंयम  अपेक्षा भी रहती है। चीन के साथ झड़प के बाद भारत के अधिकांश विपक्षी पार्टियों ने इस मर्यादा का पालन किया था। उन्होंने सबसे पहले चीन के विरोध में भारत सरकार को अपना समर्थन दिया। यह दिखाने का प्रयास किया कि चीन के खिलाफ भारत एकजुट है। दूसरी तरफ कांग्रेस लगभग अकेली थी। इस एकजुटता के सन्देश में उसकी आवाज शामिल नहीं थी। ऐसा लगा जैसे उसने अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस के वर्तमान व निवर्तमान अध्यक्ष नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह पर हमला बोल रहे थे। अब यही बयान कांग्रेस के लिए जंजाल बन गए है। सन्योग से पच्चीस जून भी आ गया। इसी दिन देश में आपात काल लागू किया था। भाजपा को भी अवसर मिला। उसने कांग्रेस को उसी के बयानों से घेरने में कसर नहीं छोड़ी। कांग्रेस ने कुछ सवाल पूंछे थे,बदले में भाजपा ने सवालों की झड़ी लगा दी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने मीडिया रिपोर्टो लेकर आ गए। उन्होंने सीधा आरोप लगाया कि यूपीए सरकार बनने के कुछ समय बाद  पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना दूतावास ने कांग्रेस पार्टी को नब्बे लाख रुपये का डोनेशन दिया था। इसके बाद राजीव गांधी फाउंडेशन ने रिसर्च के माध्यम से फ्री ट्रेड की वकालत की और इसे आगे बढ़ाया। नड्डा ने इस गम्भीर सवाल का कांग्रेस से जबाब मांगा है। उन्होंने पूंछा कि राजीव गांधी फाउंडेशन को किस बात के पैसे दिए गए थे। इसी से जुड़ा दूसरा प्रश्न था कि कांग्रेस पार्टी ने इसके एवज में कौंन सी स्टडीज कराई। चीन से डोनेशन लेने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौता करने की क्या आवश्यकता थी। नड्डा ने फिर पूंछा कि गलबान घाटी पर कांग्रेस ने देश को गुमराह करने का प्रयास क्यों किया।अगला प्रशन यह कि डोकलाम के समय जब हमारे जांबाज जवान सीमा पर चीनी सैनिकों के सामने सीना ताने खड़े थे,तब रात के अंधेरे में राहुल गांधी चुपके चुपके चीनी राजदूत से मुलाकात करने क्यों गए थे। इस मुलाकात को छिपाने का प्रयास क्यों किया गया। क्या यह सही नहीं कि कांग्रेस सरकार के समय भारत का लगभग तैतालिस हजार वर्ग किमी का भू भाग चीन का कब्जा हो गया था। क्या यह सही नहीं कि  दो हजार आठ में पार्टी ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एमओयू किया गया था जिसमें राहुल गांधी ने हस्ताक्षर किए और सोनिया गांधी पीछे खड़ी थीं। यह पार्टी टू पार्टी रिश्ता क्यों बना था।
कांग्रेस पार्टी यह बताए कि मनमोहन सिंह की सरकार के दस साल में ऐसे कितनी पार्टियों के साथ एमओयू साइन किए गए थे। नड्डा के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी कांग्रेस को आइना दिखाया। कहा कि दो हजार छह में वाणिज्य मंत्री कमलनाथ चीन जाकर एक समझौता किया था। जिसने भारत के सभी गृह उद्योग को बर्बाद कर दिया। चीन सरकार ने राजीव गांधी फाउंडेशन को रुपया मिलने के दस दिन के बाद ही कमलनाथ चीन गए थे। बिहार,उत्तर प्रदेश, अरुणाचल,सिक्किम मेघालय आदि में किसान बांस की खेती करके अपना गुजारा करते थे।  चीन ने भी बांस का  ज्यादा उत्पादन करने लगा। रवि शंकर ने पूंछा कि क्या तब चीन ने कमलनाथ पर दबाव नहीं बनाया था। इसी दबाब में  बांस के आयात पर लगने वाले ड्यूटी को खत्म करवा दिया। भारत में चीन सरकार के दबाव में कांग्रेस सरकार ने बांस को पेड़ की श्रेणी में ला दिया। इसके बाद अगर किसी किसान को अपना बांस काटना होगा तब उसे वन विभाग से और दूसरे तमाम सरकारी विभाग से जरूरी अनुमति लेनी पड़ेगी। इससे भारत के लाखों किसान बर्बाद हो गए। बांस से जुड़े कुटीर उद्योग नष्ट हो गए। ये सभी लोग चीन के बांस पर निर्भर हो गए थे। 
मोदी सरकार ने बांस को फिर से फसल और घास की श्रेणी में रखा। किसान जब चाहे तब बांस को काट सकता है। उसे बांस को काटने के लिए या बांस को पूरे भारत में कहीं भी परिवहन करने के लिए वन विभाग की कोई सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं होगी। इतना ही नहीं मोदी सरकार ने चीन से आने वाले बांस पर एंटी डंपिंग ड्यूटी भी लगा दी। चीन मसले पर कांग्रेस के बेतुके बयान सत्ता पक्ष पर बोझ बन रहे थे। पच्चीस जून को उसने हिसाब चुकता कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज से पैंतालीस वर्ष पहले देश पर आपातकाल थोपा गया था। उस समय भारत के लोकतंत्र की रक्षा के लिए जिन लोगों ने संघर्ष किया,यातनाएं झेलीं, उनका त्याग और बलिदान देश कभी नहीं भूल पाएगा। मोदी ने उन सभी को याद करते हुए नमन किया।

( उपर्युक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो। )

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