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शिक्षा माफियाओं के दबाव में स्कूल और डिजिटल शिक्षा



 

प्रियंका सौरभ   
आईपीएन।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिलहाल स्कूलों को खोलने की जल्दी में कतई नहीं है। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री ने 15 अगस्त के बाद की तारीख बताकर अनिश्चितता तो फिलहाल दूर कर दी लेकिन भारत में कुछ राज्य इन सबके बावजूद भी स्कूल खोलने की कवायद में जी-जान से जुड़े है। पता नहीं उनकी क्या मजबूरी है? मुझे लगता है वो स्कूल माफियाओं के दबाव में है। आपातकालीन स्थिति में इस तकनीकी युग में बच्चों को शिक्षित करने के हमारे पास आज हज़ारों तरीके है। ऑनलाइन या डिजिटल स्टडी से बच्चों को घर पर ही पढ़ाया जा सकता है तो स्कूलों को खोलने में इतनी जल्दी क्यों ? वैश्विक महामारी जिसमे सोशल डिस्टन्सिंग ही एकमात्र उपाय है के दौरान स्कूल खोलने में इतनी जल्बाजी क्यों ? सरकारों को चाहिए की जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं आती स्कूल न खोले जाए। शिक्षा माफियाओं के दबाव में न आये। ऐसे लोगों को न ही ज़िंदगी और न बच्चों के भविष्य की चिंता है। इनको चिंता है तो बस फीस वसूलने की।
कोविड-19 महामारी की वजह से सभी स्कूल पिछले पांच माह से बंद हैं और आज देश भर के स्कूलों में के करीब 240 मिलियन से अधिक बच्चे अपने घरों में बैठे हैं.  वो मनभावन घंटी कब बजेगी, स्कूल कब खुलेगे कहना बहुत मुश्किल है. इस बात को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ऑनलाइन माध्यम से डिजिटल शिक्षा के लिये नई गाइडलाइसं जारी की है, जिसके तहत अब शिक्षा पर महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए स्कूलों को न केवल अब  पढ़ाने और सिखाने के तरीके को बदलकर फिर से शिक्षा प्रदान करने के नए मॉडल तैयार करने हैं, बल्कि घर पर स्कूली शिक्षा और स्कूल में स्कूली शिक्षा के एक संतुलित मिश्रण के जरिये बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के नए-नए तरीके भी अमल में लाने हैं।
हाल ही में जारी किये गए नये दिशा-निर्देश विद्यार्थियों के वर्तमान दृष्टिकोण से विकसित किए गए हैं, जो लॉकडाउन के कारण पिछले कई माह से अपने घरों में ऑनलाइन/मिश्रित/डिजिटल शिक्षा के जरिये पढ़ाई कर रहे हैं. प्राइमरी से पहले के बाचों के लिए माता-पिता के साथ बातचीत करने और उनका मार्गदर्शन करने के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है. ताकि अभिभावक उनको तय समय दे सके। कक्षा 1 से 12 तक एनसीइआरटी के वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर को अपनाने की सिफारिश की गई है. कक्षा 1 से 8 तक राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में प्राथमिक वर्गों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं लेने के तय दिन को 30-45 मिनट के 2 सत्रों से अधिक ऑनलाइन समकालिक पढ़ाई नहीं कराई जा सकती. कक्षा 9 से 12 तक दिनों में प्रत्येक दिन 30-45 मिनट के 4 सत्रों से अधिक ऑनलाइन समकालिक पढ़ाई नहीं कराई जा सकती है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय  द्वारा डिजिटल शिक्षा पर प्रगति के दिशानिर्देश जारी किये गए है। इन दिशानिर्देशों में डिजिटल लर्निंग के आठ चरण शामिल हैं, जो है- प्लान- रिव्यू- गाइड- यक (टॉक) - असाइन- ट्रैक- है ये सभी कदम उदाहरणों के साथ कदम से कदम मिलाकर डिजिटल शिक्षा की योजना और कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करते हैं। लेकिन ये राज्यों के लिए  सलाह हैं और राज्य सरकारें स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर अपने नियम बना सकती हैं। आज स्कूल प्रशासकों, स्कूल प्रमुखों, शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों के लिए दिशानिर्देशों की रूपरेखा एवं मूल्यांकन की जरूरत है। ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा की अवधि, स्क्रीन समय, समावेश, संतुलित ऑनलाइन और ऑफ-लाइन गतिविधियों की योजना बनाते समय सावधानी रखने की जरूरत है,जिनमें संसाधन अवधि, स्तर वार वितरण आदि शामिल हो।
डिजिटल शिक्षा के दौरान शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण सम्बन्धी बातों की अहम् भूमिका है। साइबर सुरक्षा और नैतिक प्रथाओं सहित साइबर सुरक्षा को बनाए रखने वाली सावधानियां और उपायों पर दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए, स्कूलों को न केवल अब तक पढ़ाने और सीखने के तरीके को फिर से तैयार करना और फिर से कल्पना करना है , बल्कि घर पर स्कूली शिक्षा के एक स्वस्थ मिश्रण के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की एक उपयुक्त विधि भी पेश करनी होगी।
कुछ एक  राज्य सरकारों ने अब  स्कूलों को खोलने के आदेश भी जारी कर दिए हैं. मगर प्रश्न और चिंता की बात ये है कि क्या स्वास्थ्य मानकों को पूरा करते हुए स्कूल प्रबंधन स्कूल खोलने को तैयार है और पूरे देश भर में क्या आज स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों को भेजने को तैयार भी है या फिर वो इस वक्त अपने बच्चों के भविष्य और जान को लेकर असमंजस कि स्थिति में है. स्कूल खुले तो कोरोना वायरस संक्रमण पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि अभी लगातार कोरोना पॉजिटिव केस बढ़ रहे हैं। ऐसे बिगड़े हालात में अगर स्कूल खुले और बच्चों को विद्यालय भेजा गया तो संक्रमण फैलाव पर काबू पाना और भी मुश्किल हो जाएगा। अधिकांश सरकारी और निजी विद्यालयों के अंदर प्रत्येक बच्चे के लिए अलग से शौचालयों का प्रबंध कर पाना मुश्किल है और सामुदायिक दूरी के नियमों का अनुपालन भी संभव नहीं है।
अब शिक्षा के तौर-तरीके बदलने ही होंगे, जिसके लिए शिक्षकों और छात्रों को तैयार रहने और नए तरीके से कार्यशैली की सख्त जरूरत है। वैकल्पिक योजनाएं व्यावहारिक साबित नहीं हो पा रही हैं फिर भी हमें विकल्प तलाशने होंगे। भविष्य में छात्रों के स्वास्थ्य और सुरक्षा, स्कूलों में सफाई को लेकर विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। क्योंकि कितने भी नियम बना लिए जाएं लेकिन स्कूल खुलने के बाद बच्चों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करा पाना मुश्किल होगा। सरकार को इस तरह का फैसला उन निजी स्कूल संचालको और शिक्षा माफियाओं के दबाव से हटकर लेना चाहिए, जिनको किसी के बच्चों के स्वास्थ्य से ज्यादा फीस वसूली की चिंता ज्यादा सता रही है। इस चक्कर मे वो बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ करने के फेर में है। सरकार को लाख बार सोचना होगा. कहीं  ये पाठशाला ही प्रयोगशाला न बन जाए। इजरायल का उदाहरण है हमारे सम्मुख है जहाँ हज़ारों बच्चे व स्कूली स्टाफ स्कूल खुलते ही कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए। एक मत से यही निष्कर्ष निकला है कि फिलहाल स्कूल नहीं खोले जाएं, क्योंकि कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है, जिससे बच्चों की जान पर भी भारी जोखिम होगा। जब तक कोरोना की रोकथाम का इलाज इजाद नहीं होता तब तक सरकार व विभाग जबरदस्ती स्कूलों को न खुलवाएं।

( उपर्युक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो। )

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