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बंद दरवाजों की बजाय माहवारी पर खुलकर चर्चा की है जरूरत


 

प्रियंका सौरभ 
आईपीएन।
हाल ही में मासिक धर्म के झूठे और बेबुनियादी  कलंक और शर्म को दूर करने के उद्देश्य से भारतीय खाद्य वितरण की दिग्गज कंपनी जोमाटो ने 8 अगस्त को एक नई पीरियड लीव ’नीति की घोषणा की है, जिससे इस गंदी सोच के प्रवचन को तेजी से समाज से दूर किया जा सके। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों सहित मासिक धर्म  सभी महिला कर्मचारियों के लिए एक वर्ष में 10 अतिरिक्त छुट्टियों की अनुमति वाली इस नीति को सोशल मीडिया पर बहस के दौरान इस मुद्दे पर लोगों के बीच की खाई को बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाया गया है।
बदलते दौर में भारत ने हाल के दिनों में कुछ प्रगतिशील परिवर्तन देखे हैं और उम्मीद है कि आने वाले दिनों में प्रगतिशील सूची में हम दुनिया का नेतृत्व करेंगे। हालाँकि, कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो हमेशा से हमारे देश में चर्चा से दूर रहे हैं और एक ऐसा ही मुद्दा है महिलाओं में माहवारी ’का, जिसे आमतौर पर पीरियड्स कहा जाता है। भारत जैसे देश में इसके बारे में खुली चर्चा करना बहुत मुश्किल है क्योंकि यहाँ के लोग इस बारे खुलकर बात करते वक्त बेहद असहज महसूस करते हैं लेकिन बंद दरवाजों के पीछे इस पर चर्चा करना जिंदगी में सबसे ज्यादा पसंद करते हैं।
पीछे देखे तो 2018 में अरुणाचल प्रदेश से लोकसभा के सदस्य निनॉन्ग एरिंग द्वारा  मासिक धर्म लाभ विधेयक पर बहस के दौरान देश भर की महिलाओं के लिए उनके जीवन के सबसे अहम हिस्से पर सार्वजिनक रूप से चर्चा की गई थी. इस दौरान हर महीने काम करने के लिए मासिक धर्म की छुट्टी नीति की आवश्यकता पर व्यापक चर्चा शुरू हुई। विश्व स्वास्थ्य संगठन  द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में सभी प्रजनन रोगों में से 70 प्रतिशत के लिये ख़राब मासिक धर्म, स्वच्छता का कारण माना जाता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आज भी 62þ लड़कियाँ तथा महिलाएँ मासिक धर्म के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं तथा 28þ किशोरियाँ तो मासिक धर्म के दौरान स्कूल ही नहीं जाती हैं। केमिकल सेनेटरी पैड (जिस पर बहुत सी महिलाएँ भरोसा करती हैं) को विभिन्न बीमारियों के कारण के रूप में जाना जाता है, जिनमें मधुमेह, एलर्जी और त्वचा प्रतिक्रियाएँ शामिल हैं।
मासिक धर्म लाभ विधेयक सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं को हर महीने मासिक धर्म के दो दिनों के अवकाश के साथ-साथ मासिक धर्म के दौरान कार्यस्थल पर आराम करने की बेहतर सुविधा प्रदान करने की वकालत करता है। इसका लाभ देश भर में सरकारी मान्यता प्राप्त स्कूलों में कक्षा आठवीं और उससे ऊपर की महिला छात्राओं को भी दिया जाएगा। हालाँकि इससे पहले केरल राज्य ने लड़कियों के स्कूल ने 1912 से अपने छात्रों को मासिक धर्म की छुट्टी की अनुमति दी थी और 1992 से बिहार में दो दिनों के लिए महिलाओं को ’विशेष आकस्मिक अवकाश’ दिया गया था.
अगर अब ऐसा विधेयक आता है तो उसमे हर सेक्टर, उद्योग, पेशे, नौकरी की भूमिकाओं में लड़कियों और महिलाओं को शामिल करने की जरूरत है ,न कि सिर्फ सफेदपोश काम करने वाली कुछ एक विशेष महिलाओं के लिए। इस विधेयक को समान रूप से नीले, सफेद, गुलाबी, सुनहरे और कॉलर नौकरियों में सभी महिलाओं, लड़कियों के लिए लाना चाहिए। इस बारे में चर्चा / बहस करते समय, यह महत्वपूर्ण है कि किसी भी महिला या लड़की के साथ पक्षपात न किया जाए और केवल महिला जाति पर ध्यान केंद्रित किया जाए क्योंकि सभी वर्गों की महिलाएँ चाहे वे किसी भी तरह का काम करती हों, मासिक धर्म उनके जीवन का हिस्सा हैं।
मासिक धर्म के दौरान अनुभव किए गए दर्द और असुविधा के लिए अलग-अलग शरीर अलग-अलग प्रतिक्रिया देते हैं। महिलाओं को होने वाली कठिनाइयों और जैविक जटिलताओं को देखते हुए, मुझे लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि इस तरह के विधेयक को जल्द पारित किया जाए और आवश्यकता पड़ने पर महिलाओं को इस छुट्टी का लाभ उठाने का हर अधिकार दिया जाए।
विधेयक की बात करते समय, कुछ चिकित्सा शर्तों को ध्यान में रखना आवश्यक है जो मासिक धर्म से जुड़ी होती हैं जैसे कि मेनोरेजिया, एंडोमेट्रियोसिस, फाइब्रॉएड श्रोणि सूजन की बीमारी आदि। महिलाओं का एक वर्ग इस विधेयक के पक्ष में नहीं है क्योंकि उनका मानना है कि इस तरह के कानून से कार्यस्थल पर उनके खिलाफ पूर्वाग्रह बढ़ेगा और उन्हें पूर्वाग्रह, कम वेतन, धीमी पदोन्नति और कम भागीदारी के रूप में अनुचित उपचार से निपटने की आवश्यकता पैदा करेगा।
इसे आज बदलने की आवश्यकता है। महिलाओं को उनके जैविक ढांचे के लिए दोषी नहीं माना जाना चाहिए। अगर महिलाओं की चुप्पी में हम अपना स्वार्थ ढूंढते है  तो हम निश्चित रूप से पितृसत्ता के चक्र को आगे बढ़ा रहे हैं। हमें अपने आप को यह याद दिलाना महत्वपूर्ण है कि जब हम कार्यस्थल पर समानता की बात करते हैं तो इसका मतलब है कि पुरुषों और महिलाओं के लिए सभी कामकाजी परिस्थितियों की समानता है।  इसलिए अगर किसी महिला को अपने नियंत्रण में नहीं रहने की स्थिति में काम करना मुश्किल लगता है तो उन्हें इस छुट्टी का लाभ उठाने की अनुमति दी जानी चाहिए।
यह जरूरी है कि इस तरह के कानून के सख्त होने के लिए, इसके आसपास होने वाली बातचीत को खुले तौर पर करने की जरूरत है। कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह के कुचक्र को तोड़ने का ये सही समय हैं  इसलिए इस बिल को सफलतापूर्वक पारित करने के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम एक संवेदनशील, अच्छी तरह से चाक-चौबंद और सावधानीपूर्वक नियोजित नीति को इसमें शामिल करें।
ऐसे देश में जहां मासिक धर्म  के दौरान लड़कियों को परिवार से अलग-थलग कर दिया जाता है। कहीं मंदिर, तो कहीं रसोईघर में प्रवेश वर्जित कर दिया जाता है,और घृणा से देखा जाता है, वहां ‘मासिक धर्म अवकाश’ नीति के लिए प्रस्ताव करना बड़ा मुश्किल होगा लेकिन फिर भी सही दिशा में ये एक बहुत जरूरी और महिला हितेषी कदम होगा।
“आज देश भर के पुरुषों को जोमाटो के सन्देश को  समझने और अपनाने की बेहद सख्त जरूरत है। जिसमे महिला सहयोगियों की छुट्टी पर असहज न होने की बात कही गई है। और बताया गया है कि माहवारी के दिन महिलाओं के जीवन का एक हिस्सा है, और जब तक हम पूरी तरह से यह नहीं समझते कि महिलाएं इन दिनों में किस माध्यम से गुजरती हैं, तब तक हमें उन पर भरोसा करने की आवश्यकता है। जब वे कहती हैं कि उन्हें आराम करने की आवश्यकता है तो पुरुर्षों को आभास होना चाहिए कि मासिक धर्म की ऐंठन बहुत सारी महिलाओं के लिए कितनी दर्दनाक है दृ और हमें ऐसे समय उनका समर्थन करना चाहिए तभी हम सही मायने में एक सहयोगी संस्कृति का निर्माण कर पाएंगे।

( उपर्युक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो। )

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