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सबको जन्नत नसीब होने पर कश्मीर के खुराफाती बेचैन क्यों है ?


 

प्रियंका सौरभ 
आईपीएन।
हाल ही में केंद्र ने भारतीय नागरिकों के लिए संविधान के अनुच्छेद 370 और 35। के निरस्त होने के एक साल बाद कई कानूनों में संशोधन करके जम्मू-कश्मीर में सभी भारतीयों के  जमीन खरीदने का तोहफा दिया है। पिछले साल अगस्त में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को निरस्त करने से पहले, जम्मू-कश्मीर में गैर-निवासी कोई अचल संपत्ति नहीं खरीद सकते थे। ताजा बदलावों ने गैर-निवासियों के लिए जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश में जमीन खरीदने का मार्ग प्रशस्त किया है। दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर के नज़रबंद नेताओं ने रिहा होते ही फिर से अपनी पुरानी खुऱाफात चालू कर दी है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती, उमर अब्दुल्ला और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ़्रेंस, माकपा तथा जम्मू-कश्मीर अवामी नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेताओं ने  यह मांग कर दी कि भारत सरकार राज्य के लोगों को वो सारे अधिकार फिर से वापस लौटाए जो पाँच अगस्त 2019 से पहले उनको हासिल थे।
अब उनके द्वारा  इस नए कदम का विरोध भी वहां शुरू हो गया है. पीपुल्स अलायंस फॉर गुप्कर डिक्लेरेशन  ने जम्मू और कश्मीर में सात मुख्यधारा की पार्टियों के एक सम्मलेन में भूमि कानूनों में बदलाव की निंदा की और सभी मोर्चों पर इनसे लड़ने की कसम खाई। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उन्हें संशोधन अस्वीकार्य है। जम्मू और कश्मीर के संशोधित कानून अधिसूचना ने राज्य के भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 30 और भाग टप्प् को भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार के साथ बदल दिया है।
अधिसूचना द्वारा निरस्त किए गए अन्य प्रमुख कानूनों में जम्मू-कश्मीर बिग लैंडेड इस्टेट्स (उन्मूलन) अधिनियम, शेख अब्दुल्ला द्वारा लाया गया एक ऐतिहासिक अधिनियम शामिल है, जिसने भूमिहीन टिलर को भूमि अधिकार दिया। जेके एलियनेशन ऑफ लैंड एक्ट, 1995, जेके कॉमन लैंड्स (विनियमन) अधिनियम, 1956 और जेके कंसॉलिडेशन ऑफ होल्डिंग्स एक्ट, 1962 को भी निरस्त कर दिया गया। इस पर पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा है  कि यह जम्मू-कश्मीर के लोगों को कहीं का न छोड़ने के लिए उठाया गया कदम है। उन्होंने ट्वीट किया, ’यह जम्मू-कश्मीर के लोगों को कमजोर करने और उन्हें कहीं का न छोड़ने के भारत सरकार के नापाक मंसूबों से जुड़ा एक और कदम है। असंवैधानिक तरीके से अनुच्छेद 370 हटाकर हमारे प्राकृतिक संसाधनों की लूट की इजाजत दी गई और अब जम्मू-कश्मीर की जमीन बिक्री के लिए रख दी।
निरस्त किए जाने वाले अन्य कानूनों में कृषि होल्डिंग्स अधिनियम, 1960 के विखंडन की जम्मू और कश्मीर रोकथाम; भूमि के रूपांतरण और बागों के अलगाव पर जेके निषेध अधिनियम, 1975; जेके राइट ऑफ प्रायर प्रोक्योरमेंट एक्ट, 1936 ए डी; टेनेंसी की धारा 3 (निष्कासन कार्यवाही का ठहराव) अधिनियम 1966; भूमि अधिनियम, 2010 का जेके उपयोग; जम्मू और कश्मीर भूमिगत उपयोगिताएँ (भूमि में उपयोगकर्ता के अधिकारों का अधिग्रहण) अधिनियम शामिल हैं
नयी अधिसूचना यह भी बताती है कि कॉर्प कमांडर के पद से नीचे के सेना के अधिकारी के लिखित अनुरोध पर सरकार एक क्षेत्र को “सामरिक क्षेत्र“ के रूप में घोषित नहीं कर सकती, केवल सशस्त्र बलों के प्रत्यक्ष परिचालन और प्रशिक्षण आवश्यकताओं के लिए इस अधिनियम के संचालन से और नियम और कानून और तरीके से बनाए गए हैं। देखे तो ये कदम संवैधानिक वैधता और उचित प्रतिबंध के साथ आया है. संविधान मूल रूप से अनुच्छेद 19 और 31 के तहत संपत्ति के अधिकार के लिए प्रदान किया गया। अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को संपत्ति के अधिग्रहण, धारण और निपटान के अधिकार की गारंटी देता है।
अनुच्छेद 31 में कहा गया है कि “कोई भी व्यक्ति कानून के अधिकार द्वारा अपनी संपत्ति बचाने से वंचित नहीं होगा।“ यह भी प्रदान किया कि मुआवजे का भुगतान उस व्यक्ति को किया जाएगा, जिसकी संपत्ति सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए ली गई है। संपत्ति के अधिकार से संबंधित प्रावधानों को कई बार बदला गया। 1978 के 44 वें संशोधन ने संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया। एक नया प्रावधान, अनुच्छेद 300-ए को संविधान में जोड़ा गया था, जो प्रदान करता था कि “कोई भी व्यक्ति कानून के अधिकार से अपनी संपत्ति बचाने से वंचित नहीं होगा“।
अनुच्छेद 19 के तहत सभी नागरिकों को अधिकार है कि उसे भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता; लोगों  को इकट्ठा करने के लिए और बिना हथियारों के; संघों या यूनियनों के गठन के लिए; पूरे भारत में स्वतंत्र रूप से घूमने के लिए; भारत के किसी भी भाग में निवास करना और बसना; किसी भी पेशे का अभ्यास करना, या किसी व्यवसाय, व्यापार या व्यवसाय को करना दिए गए है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (डी) और (ई) भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने और भारत के क्षेत्र के किसी भी हिस्से में निवास करने और बसने के अधिकार की गारंटी देता है।
यह अधिकार आम जनता के हित में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों की रक्षा के लिए कानून द्वारा लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है।  आंदोलन की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) (डी)ः भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (डी) भारत के सभी नागरिकों को “भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने के अधिकार“ की गारंटी देता है। हालाँकि यह अधिकार अनुच्छेद 19 (5) के तहत उल्लिखित उचित प्रतिबंधों के अधीन है। अनुच्छेद 19 का खंड (5) राज्य को आम जनता के हित में या किसी अनुसूचित जनजाति के हित की रक्षा के लिए उचित प्रतिबंध लगाने का अधिकार देता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के खंड (5) के अनुसार दो आधारों पर आंदोलन की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाया जा सकता है- आम जनता के हित में एवं अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण के लिए. खड़क सिंह बनाम यूपी  मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से स्थानांतरित करने का अधिकार का अर्थ है नियंत्रण रेखा का अधिकार जो किसी को भी पसंद करने के अधिकार को दर्शाता है, और हालाँकि वह पसंद करता है।
उत्तर प्रदेश बनाम राज्य कौशल्या  मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि वेश्याओं के आंदोलन का अधिकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के आधार पर और सार्वजनिक नैतिकता के हित में प्रतिबंधित किया जा सकता है। निवासी की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (1) (ई) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (ई) भारत के प्रत्येक नागरिक को गारंटी देता है, “भारत के किसी भी हिस्से में निवास करने और बसने का अधिकार“। इस अधिकार को उचित प्रतिबंधों के अधीन किया जाता है, जो कि अनुच्छेद 19 के खंड (5) के तहत, आम जनता के हित में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों की रक्षा के लिए, राज्य द्वारा लगाया जा सकता है। आंदोलन और निवास की स्वतंत्रता केवल भारत के नागरिकों पर लागू होती है, न कि विदेशियों पर। एक विदेशी अनुच्छेद 19 (1) (ई) की गारंटी के अनुसार देश में निवास करने और बसने के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। भारत सरकार के पास भारत से विदेशियों को बाहर निकालने की शक्ति है।इसलिए यह स्पष्ट है कि इस संशोधन को अनुच्छेद 19 के दायरे में लाया गया है, जिसमें कृषि भूमि जैसे गैर-कृषकों को हस्तांतरित नहीं किया जाएगा। हालांकि, कुछ शर्तें हैं जहां उन्हें विकास के उद्देश्यों के लिए स्थानांतरित किया जा सकता है। यह प्रतिबंध जम्मू-कश्मीर के मूल निवासियों के हितों की रक्षा करेगा और उन्हें सशक्त भी करेगा।
दरअसल अब कश्मीरी नेताओं को जमीनी हकीकत समझने और वर्तमान दौर के साथ व्यवहारिक होने की जरूरत है। उन्हें अब सच और जमीनी हकीकत समझ लेनी चाहिए। अब भारत में उनकी बकवास कोई सुनने वाला नहीं है। वे चाहें तो कुछ भी कर के देख लें, उनकी अक्ल ठिकाने लग जाएगी। उन्हें समझ आ जाना चाहिए  कि वे राज्य की जनता का विश्वास पूरी तरह खो चुके हैं और यहाँ की जनता अब उनके बहकावे में रहने वाली नहीं है। हर हिन्दुस्तानी को अब ये पता चल चुका है कि जम्मू और कश्मीर के खुराफाती नेता अपने फायदे के लिए चीन और पाकिस्तान की भाषा क्यों बोल रहे हैं? समय रहते अब इन्हें समझ आ जाना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर ही नहीं भारत की एक-एक इंच भूमि पवित्र और खास है। अखंड भारत की कोई भी जगह कम या अधिक विशेष नहीं है। अब  देश हित और कश्मीरी नेताओं के हित में यही होगा कि अब ये राज्य के विकास में सरकार का साथ दें और जनता का विश्वास पुनः प्राप्त करने की कोशिश में जुट जाए । वे राज्य के साथ मिल कर काम करें और प्रगति में अपना योगदान दें। अगर वे समझदार नेता हैं तो  सबको साथ लेकर चलने में यकीन करने वाली भारत सरकार के साथ बढे। अन्यथाराज्य का विकास तो होगा ही ये सत्य है मगर इनको पूछने वाला कोई नहीं होगा ?

( उपर्युक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो। )

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