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नए अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए भारत है सफलता की कहानी


 

डॉ. सत्यवान सौरभ
आईपीएन।
अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले ली है। अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन के सामने बहुत से अवसर हैं और चुनौतियां भी। कोरोना वायरस महामारी के दौर में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप को हराकर जो बाइडन देश के 46वें राष्ट्रपति बने है। जो बाइडेन ने कहा है कि वर्तमान संकट बड़ा और रास्ता मुश्किल है। अब हम और वक्त बर्बाद नहीं कर सकते। जो करना है वो, फौरन करना है। लेकिन बाइडन सरकार को इसका बात का भी अहसास है कि नई सरकार के लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते इतने आसान भी नही हैं।

अमेरिकी संसद के निचले सदन यानी हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स और सीनेट में डेमोक्रेट्स के मुकाबले रिपब्लिकन पार्टी की ताक़त देखते हुए डेमोक्रेट पार्टी के जो बाइडेन के लिए अपने घरेलू एजेंडे को पूरी तरह से लागू कर पाना क्या आसान होगा, ये एक अहम सवाल है। पद संभालने के पहले 10 दिनों के अंदर बाइडेन ने कोरोना महामारी, बेबस अमेरिकी अर्थव्यवस्था, जलवायु परिवर्तन और नस्लीय भेदभवाव से संबंधित चार अहम संकटों के समाधान की दिशा में निर्णायक कदम उठाने की बात कही है। पिछले दिनों जो बाइडेन ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए 1।9 ट्रिलियन डॉलर के नए राहत पैकेज की शुरुआत भी की है।  इस पैकेज को अमेरिकन रेस्क्यू प्लान नाम दिया गया है।

बाइडेन प्रशासन ने कोविड वैक्सीनेशन में तेजी लाने के लिए एक ठोस योजना बनाई है जैसा कि जो बाइडेन ने पहले वादा किया गया था। पेरिस जलवायु समझौते में फिर से अमेरिका के शामिल होने और कुछ मुस्लिम बहुसंख्यक देशों के लोगों के प्रवेश पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने समेत कई अहम आदेशों पर हस्ताक्षर करेंगे। देश में अवैध रूप से रह रहे 1।1 करोड़ लोगों की नागरिकता को लेकर स्थिति स्पष्ट करने का कानून लाना भी बाइडेन सरकार के एजेंडे में शामिल है। अमेरिका के नये राष्ट्रपति जो बाइडेन की योजनाओं और उसे अमलीजामा पहनाने की कोशिशे क्या रहेगी ये तो अब वक्त बताएगा।

एक करीबी चुनाव जीतने के बाद, राष्ट्रपति-चुनाव जो बिडेन को अब एक घातक विभाजित महामारी और संघर्षरत अर्थव्यवस्था से जूझ रहे एक गहरे विभाजित राष्ट्र को संचालित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। नए उदारवादी डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति के लिए, अपनी पार्टी में प्रगतिवादियों के समर्थन को बनाए रखते हुए, दोनों को रूढ़िवादी रिपब्लिकन के साथ साझा आधार खोजने में सफलता की उम्मीद बनानी होगी।

राष्ट्रपति ट्रम्प के गैर-तथ्य-आधारित दावे के बावजूद कि चुनाव में धांधली हुई थी, सभी राज्यों ने अपने डेटा को प्रमाणित किया है और जो बिडेन को जल्द ही संयुक्त राज्य के 46 वें राष्ट्रपति के रूप में वोट दिया। हालांकि उनके  प्रशासन को एक उथल-पुथल का सामना करेगा, क्योंकि  सीनेट में बहुमत  जनवरी में जॉर्जिया में रन-ऑफ में तय किया जाएगा।  अपने मंत्रिमंडल में जो भी विकल्प चुने वो सभी अनुभवी, सरकार में पारंगत, चुनौतियों के प्रति समझदार होना जरूरी होगा। चार साल पहले, राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने उद्घाटन संबोधन का इस्तेमाल करते हुए कहा था कि वह ’अमेरिकी नरसंहार’ को समाप्त करने का वादा करते हैं।

राष्ट्रपति-चुनाव  जीतने के बाद जो बिडेन  उसी स्थान पर दिखाई दिए।  6 जनवरी को हुए रक्तपात का मतलब था 45 वें से 46 वें राष्ट्रपति के हाथों की सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण नहीं होना।  वाशिंगटन पोस्ट-एबीसी न्यूज पोल में पाया गया कि बिडेन ने 49 प्रतिशत अमेरिकियों के साथ कार्यालय में प्रवेश किया है जो देश के भविष्य के लिए सही निर्णय लेंगे।  खैर ये चार साल पहले ट्रम्प के 38 प्रतिशत अंक की तुलना में बहुत अधिक विश्वास का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन 61 प्रतिशत की तुलना में बहुत कम है जो 2009 में बराक ओबामा के फैसलों पर भरोसा व्यक्त करते थे।

फिर भी जो बेडेन के सामने  बराक ओबामा की बजाय चुनौतियां बहुत कम है। पिछले चार साल की कमियों को पूरा करना ही उनका लक्ष्य होगा। इंडो-पेसिफिक संबंधों पर जोर, इंटरनेशनल संस्थाओं में सक्रियता, जलवायु एवं पर्यावरण के मुद्दों पर बातचीत एवं सभी अमेरिकियों को साथ लेकर चलना उनके सामने बड़ी चुनातियाँ होगी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने वाले जॉ बिडेन के साथ डेमोक्रेटिक सूरज ने आखिरकार ट्रम्प प्रशासन पर कब्जा कर लिया है। नई दिल्ली अगले कुछ हफ्तों तक वाशिंगटन पर कड़ी नजर रखने जा रही है ताकि यह समझ सके कि भारत-अमेरिका के संबंध कैसे आकार लेंगे।

बिडेन प्रशासन ने राज्य के नामी एंथोनी ब्लिंकेन के सचिव और रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन जैसे मजबूत अधिकारियों को भारत-अमेरिका संबंधों के लिए उत्साहजनक पूर्वावलोकन दिया है। बिडेन खुद भारत के साथ दोस्ताना संबंधों के मुखर समर्थक रहे हैं और राष्ट्रपति बराक ओबामा के नेतृत्व में उपराष्ट्रपति के रूप में अपने दिनों के बाद से नई दिल्ली में एक परिचित चेहरा हैं। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की निवर्तमान भारत की नीति का समर्थन करते हुए, ब्लिंकन ने कहा था कि भारत लगातार अमेरिकी प्रशासन की “द्विदलीय सफलता की कहानी“ रहा है।

(जो बेडेन के सामने बराक ओबामा की बजाय चुनौतियां बहुत कम है। पिछले चार साल की कमियों को पूरा करना ही उनका लक्ष्य होगा। इंडो-पेसिफिक संबंधों पर जोर, इंटरनेशनल संस्थाओं में सक्रियता, जलवायु एवं पर्यावरण के मुद्दों पर बातचीत एवं सभी अमेरिकियों को साथ लेकर चलना उनके सामने बड़ी चुनातियाँ होगी। संयुक्त राज्य अमेरिका के 46 वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने वाले जॉ बिडेन के साथ डेमोक्रेटिक सूरज ने आखिरकार ट्रम्प प्रशासन पर कब्जा कर लिया है। नई दिल्ली अगले कुछ हफ्तों तक वाशिंगटन पर कड़ी नजर रखने जा रही है ताकि यह समझ सके कि भारत-अमेरिका के संबंध कैसे आकार लेंगे।)

( उपर्युक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो। )

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