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बीस वर्षों में भी नहीं सीखा विरोध का सलीका


 
डॉ दिलीप अग्निहोत्री
विगत बीस वर्षों से कांग्रेस नरेंद्र मोदी के विरोध में जमीन आसमान एक कर रही है। गुजरात से शुरू हुई उसकी यह मुहिम अनवरत जारी है। लेकिन कुछ तो ऐसा है जो कांग्रेस का यह अंदाज उसी पर भारी पड़ता है। ऐसा लगता है कि उसने विरोध सलीका अभी तक सीखा नहीं है। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे,उस दौरान केंद्र में कॉंग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार थी। इस अवधि में नरेंद्र मोदी को घेरने में सभी संभव जतन किये गए। लेकिन कांग्रेस को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी लगातार आगे बढ़ते रहे,लगातार तीन बार पूर्ण बहुमत से उनको जनादेश मिलता रहा। इसका बड़ा कारण यह था कि कांग्रेस गोधरा के बाद हुए दंगे में उलझी रही,नरेंद्र मोदी गुजरात के विकास में लगातार आगे बढ़ते रहे। उनके विकास कार्यों का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिला। इस छवि का लाभ नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में मिला। यूपीए सरकार की जगह मतदाताओं ने उनके नेतृत्व में सरकार गठित करने का जनादेश  दिया था। कांग्रेस ने पहले दिन से इस जनादेश को सहजता में स्वीकार नहीं किया था। केंद्र में भी गुजरात इतिहास अपने को दोहरा रहा था। कांग्रेस मोदी विरोध में तरह तरह के जतन करती रही। दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी आगे बढ़ते रहे। कांग्रेस फिर खाली हाँथ ही रह गई। पिछले लोकसभा चुनाव में उसकी सीटें घट गई। जबकि उस चुनाव में राहुल गांधी के साथ प्रियंका गांधी ने भी कमान संभाली थी। इसके पहले कांग्रेस के भीतर कहा जाता था कि प्रियंका आओ कांग्रेस बचाओ। इसकी भी असलियत सामने आ गई। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने अपनी दम पर पूर्ण बहुमत हासिल किया था। ऐसे में कांग्रेस को आत्मचिंतन करना चाहिए। क्या कारण है कि उसका नरेंद्र मोदी विरोध उसी पर भारी पड़ता है। कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दम भरती है। स्वतन्त्रता पूर्व वाली कांग्रेस में महात्मा गांधी के आंदोलन सत्याग्रह प्रसिद्ध है। आज भी लोग उनसे प्रेरणा लेते है। भारतीय जनता पार्टी ने भी विपक्ष में रहते हुए सरकारों का खूब विरोध किया। विपक्षी भूमिका में उसने अनेक महत्वपूर्ण आंदोलनों का समर्थन किया। जय प्रकाश नारायण की समग्र क्रांति में जनसंघ सहभागी था। आंदोलन में निर्णायक भूमिका जनसंघ की थी। यह आंदोलन भी प्रजातांत्रिक रूप से प्रतिष्ठित हुआ। इस पर अराजकता के आरोप नहीं थे। विदेशी इशारों संबन्धी कोई आशंका नहीं थी। इसके अलावा भाजपा ने स्वामी रामदेव व अन्ना हजारे के आंदोलन को समर्थन दिया। राम देव के आंदोलन में पुलिस ने व्यवधान किया। अन्ना हजारे के आंदोलन में संघ भाजपा के लोगों ने देश में माहौल बनाया था। यह सभी प्रजातांत्रिक आंदोलन था। वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व अपनी दम पर कोई प्रभावी आंदोलन नहीं कर सकी। अब तो लगता है कि उसका शीर्ष नेतृत्व व संगठन दोनों जन आंदोलन करने की स्थिति में नहीं है। अब कांग्रेस दूसरों के आंदोलनों के पीछे भागने वाली पार्टी बन गई है। राहुल गांधी को कहीं भी सरकार विरोधी आवाज सुनाई देती है,वह उसे पार्टी का समर्थन देने दौड़ पड़ते है। ऐसा करते समय अपने विवेक का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह नहीं देखा जाता कि उस आंदोलन के रहनुमा कौन है,उस आंदोलन की माग कितनी उचित है। कांग्रेस नेता शाहीन बाग घण्टाघर धरने लपकने दौड़ गए। यहां कहा जा रहा था कि यह नागरिकता छीनने के विरोध में आंदोलन है। इसके वास्तविक सूत्रधार आ कोई आता पता नहीं था। आंदोलन झूठ पर आधारित था। नागरिकता कांनून में नागरिकता देने का प्रावधान था। नागरिकता छिनने का एक शब्द भी नहीं था। आंदोलन नाकाम रहा,यह अपने आप समाप्त हो गया। लेकिन कांग्रेस की प्रतिष्ठा को यह धूमिल कर गया। इसी प्रकार किसान आंदोलन भी झूठ पर आधारित था। न्यूनतम समर्थन मूल्य और कृषि मंडी समिति समाप्त नहीं होगी। किसानों के अधिकार बढ़ाये गए। इसलिए आंदोलन का औचित्य नहीं था। लेकिन सरकार का विरोध सुन कर राहुल गांधी ने समर्थन दिया। जब यहां आपत्तिजनक झंडे बैनर दिखाई दिए,तभी कांग्रेस सवाल उठा सकती थी। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व पंजाब सरकार के इशारे पर चलता दिखाई दिया। इस आंदोलन को समर्थन से कांग्रेस की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। इस आंदोलन को समर्थन मात्र कांग्रेस किसानों की हमदर्दी हासिल नहीं कर सकती। यूपीए सरकार के दस वर्षों में उसने क्या कार्य किये यह भी बताना होगा। यूरिया तक कि आपूर्ति पर्याप्त नहीं थी। दशकों से सिंचाई परियोजनाओं को लम्बित रखा गया। स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू नहीं की गई। जिस प्रकार किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन को समर्थन देकर कोई किसान हितैषी नहीं हो सकता। उसी प्रकार अडानी अम्बानी पर हमला बोल कर कोई महान नहीं हो सकता। उद्योगपतियों के किसी राजनीतिक पार्टी से बैर नहीं रहा। सबके उनसे बढ़िया संबन्ध रहे है। अडानी अम्बानी कांग्रेस सरकारों के समय ही मजबूत बनकर उभर चुके थे। इसके अलावा देश के समग्र विकास के लिए कृषि व उद्योग दोनों का विकास आवश्यक है। जो लोग भारतीय उद्योगजगत पर हमला बोल रहे है वह वस्तुतः विदेशी कम्पनियों को ही प्रसन्न कर रहे है। यहां भारतीय कम्पनियों के प्रतिष्ठानों पर हमला बोलना अंततः देश की प्रगति को ही बाधित करेगा। इससे निवेश पर प्रतिकूल असर होगा। विदेशी कम्पनियों के मनोबल बढ़ेगा।
 

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