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डॉ. भीमराव अंबेडकर : एक अप्रतिम राष्ट्र निर्माता




अर्जुन राम मेघवाल
आईपीएन। पूरा देश डॉ. अंबेडकर की 130वीं जयंती मना रहा है। एक राष्ट्रवादी व्यक्तित्व जिसके विचारों से राष्ट्र निर्माण के अभियान में शामिल होने के लिए हर नागरिक को एक अदम्य भावना और प्रेरणा मिलती है। वैसे, उनकी भूमिका मुख्य रूप से एक समाज सुधारक, भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष और राष्ट्र के पहले कानून मंत्री के रूप में जानी जाती है। हालांकि उन्होंने एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री, सक्रिय राजनीतिज्ञ, प्रख्यात वकील, श्रमिक नेता, महान सांसद, उच्चकोटि के विद्वान, मानव विज्ञानी, प्रोफेसर और एक अच्छे वक्ता आदि के रूप में भी काम किया। अब, चूंकि भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत हुई है। ऐसे में बहुआयामी डॉ. अंबेडकर के विचारों की गंभीरता को समझना, एक राष्ट्र निर्माता के रूप में उनकी भूमिका और किए गए कार्यों, सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने के साथ ही न्याय संगत समाज और सशक्त राष्ट्र बनाने में उनके योगदान का जिक्र अनिवार्य हो जाता है।
डॉ. अंबेडकर ने संस्थानों को खड़ा करने में अग्रणी भूमिका निभाई लेकिन इतिहास के पन्नों में उन्हें उचित स्थान नहीं मिला। देश के केंद्रीय बैंक यानी भारतीय रिजर्व बैंक का गठन हिल्टन यंग कमिशन की सिफारिशों के आधार पर किया गया, जिसने डॉ. अंबेडकर की पुस्तक ’रुपये की समस्या- उद्भव और समाधान’ में सुझाए गए दिशानिर्देशों से मदद ली थी। 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारी परिषद में लेबर मेंबर (श्रम मंत्री) के रूप में, उन्होंने राष्ट्रहित में पानी, बिजली और श्रम कल्याण के क्षेत्र में कई नीतियां तैयार कीं। उनकी दूरदर्शिता ने केंद्रीय जलमार्ग, सिंचाई और नौचालन आयोग (सीडब्लूआईएनसी) के रूप में केंद्रीय जल आयोग की स्थापना, केंद्रीय तकनीकी बिजली बोर्ड, नदी घाटी प्राधिकरण (जिसने दामोदर नदी घाटी परियोजना, सोन नदी घाटी परियोजना, महानदी (हीराकुंड परियोजना), कोसी और चंबल नदी पर अन्य और दक्कन क्षेत्र की नदियों पर परियोजनाओं पर सक्रियता से काम किया) की स्थापना के जरिए एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन की स्थापना में मदद की। अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 और नदी बोर्ड अधिनियम 1956 उनके सुनियोजित दृष्टिकोण का ही परिणाम है। डॉ. अंबेडकर हर मंच पर दलित वर्ग की एक सशक्त आवाज थे। गोलमेज सम्मेलन में उनके प्रतिनिधि के रूप में, उन्होंने क्रूर जमींदारों के चंगुल से किसानों और श्रमिकों को आजाद करा उनकी स्थिति सुधारने पर जोर दिया। 1937 में बॉम्बे असेंबली के पूना सत्र के दौरान, उन्होंने कोंकण में भूमि की खोती प्रथा को समाप्त करने के लिए एक विधेयक पेश किया। बॉम्बे में 1938 में काउंसिल हाल तक ऐतिहासिक किसान मार्च ने उन्हें किसानों, श्रमिकों और भूमिहीनों का लोकप्रिय नेता बना दिया। वह देश के पहले जनप्रतिनिधि थे, जिसने जोतदारों की दासता को समाप्त करने के लिए विधेयक पेश किया था। ’भारत में छोटी जोत और उसके उपाय’ (1918) शीर्षक वाले उनके लेख ने भारत की कृषि समस्या के जवाब के रूप में औद्योगिकीकरण का प्रस्ताव दिया, जो समकालीन आर्थिक बहसों में आज भी प्रासंगिक है।
बॉम्बे असेंबली के सदस्य के रूप में, श्रमिकों की आवाज बने डॉ. अंबेडकर ने औद्योगिक विवाद विधेयक 1937 का जमकर विरोध किया क्योंकि इसने श्रमिकों के हड़ताल करने के अधिकार को खत्म कर दिया था। लेबर मेंबर के रूप में, उन्होंने ‘काम करने की बेहतर स्थिति’ के बजाय ’श्रमिक के जीवन की बेहतर स्थिति’ की वकालत की और सरकार की श्रम नीति की मूल संरचना तैयार की। उनके प्रयासों के कारण ही प्रगतिशील श्रम कल्याणकारी उपाय किए गए और उन्हें सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया गया। उन्होंने काम के घंटे को घटाकर 48 घंटे प्रति सप्ताह करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया, कोयला खदानों में भूमिगत काम पर महिलाओं के रोजगार पर प्रतिबंध हटा, ओवरटाइम और पेड लीव का प्रावधान जोड़ा गया, न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण और संरक्षण, लैंगिक भेदभाव किए बिना समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांत को स्थान मिला, मातृत्व लाभ सुनिश्चित किया और ट्रेड यूनियनों को स्वीकार करते हुए श्रम कल्याण निधि का गठन हुआ। इन सभी प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए, डॉ. अंबेडकर ने कम्युनिस्ट मजदूर आंदोलनों और उनकी देश से बाहर वफादारी और उत्पादन के सभी साधनों को नियंत्रित करने के उनके मार्क्सवादी दृष्टिकोण का खुलकर विरोध किया।
संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों के जरिए भारत में समतामूलक समाज बनाने के लिए गंभीरता से प्रयास किए। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के लिए की गई उनकी वकालत के चलते आजादी के तुरंत बाद महिलाओं के मतदान का अधिकार सुनिश्चित किया गया। गोद लेने और पैतृक संपत्ति में हिस्से के अधिकार के प्रावधान वाला उनके द्वारा लाया गया हिंदू कोड बिल महिलाओं की स्थिति को सुधारने की दिशा में एक क्रांतिकारी उपाय था। उन्होंने केंद्र और राज्यों के बीच अपने आर्थिक स्तर को बढ़ाने और उनके हित को खतरे में डाले बिना एक संघीय वित्त प्रणाली विकसित करने में प्रमुख योगदान दिया। राष्ट्रीय अखंडता और संप्रभुता को मजबूत करने के प्रबल समर्थक के रूप में, उन्होंने जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने का योजना के स्तर पर ही विरोध किया था और इसे संविधान के मसौदे में शामिल भी नहीं किया। केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद 10 अक्टूबर 1951 को अपने बयान में उन्होंने जम्मू-कश्मीर का मुद्दा अचानक संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने की नेहरू की विदेश नीति पर गहरा असंतोष व्यक्त किया था। मानव अस्तित्व से संबंधित सभी मामलों पर अपने विशिष्ट ज्ञान के जरिए डॉ. अंबेडकर के असाधारण व्यक्तित्व ने सभी क्षेत्रों में राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है। एक अलग पूजा पद्धति के जरिए, उन्होंने बौद्ध धर्म के माध्यम से दया, उदारता और करुणा के भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की जन-हितैषी, गरीबों के हित में और जन कल्याणकारी नीतियों और कार्यक्रमों में डॉ. अंबेडकर की विचारधारा प्रदर्शित होती है। केंद्र सरकार सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तीकरण के माध्यम से नागरिकों के जीवन स्तर को सुधारने और सुगम बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। जन्मभूमि (महू), शिक्षा भूमि (लंदन), चैती भूमि (मुंबई), दीक्षा भूमि (नागपुर) और महापरिनिर्वाण भूमि (दिल्ली) के रूप में पंचतीर्थ का विकास राष्ट्रवादी सुधारक की विरासत को सहेजने और सम्मान देने का प्रयास है।
एससी और एसटी समुदाय में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए स्टैंड-अप इंडिया, ऋण लाभ के लिए मुद्रा योजना का सफल क्रियान्वयन, स्टार्टअप इंडिया, वेंचर कैपिटल फंड, राष्ट्रीय साधन-सह-योग्यता छात्रवृत्ति योजना का विस्तार, हेल्थकेयर के लिए आयुष्मान भारत योजना, पीएम आवास योजना, उज्ज्वला योजना, दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, सौभाग्य योजना, मातृत्व अवकाश 26 सप्ताह तक बढ़ाने और श्रम कानूनों का सरलीकरण उन तमाम उपायों में से हैं जो महान राष्ट्र के डॉ. अंबेडकर के सपनों को पूरा करने के लिए सरकार की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।

( लेखक अर्जुन राम मेघवाल केंद्रीय संसदीय राज्य मंत्री हैं। उपर्युक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो। )

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