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आगामी विधानसभा चुनावों के लिए समाजवादी दल में बैचेनी ?




मृत्युंजय दीक्षित
आईपीएन। आगामी विधानसभ चुनावों में समाजवादी पार्टी ने अपनी चुनावी तैयारियां को काफी तेजी के साथ आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। सपा नेता अखिलेश यादव आज जिस गति से समाजवादी विमर्श को आगे बढ़ा रहे हैं तथा सरकार बनाने के लिए वह किसी भी सीमा तक जाने को तैयार दिख रहे हैं। कांग्रेस के गांधी परिवार की तर्ज पर ही अब उन्होंने अपने आप को उदार हिंदुत्व का चेहरा दिखाने का प्रयास शुरू किया है वहीं वह अपनी पार्टी के पुराने परम्परागत वोट बैंक को एक बार फिर से साधने का प्रयास कर रहे हैं। वह इस बार काफी बदले-बदले से दिख रहे हैं या फिर उन्हें बौद्धिक भ्रम हो गया है ,यह तो आनें वाला समय बतायेगा । समाजवादी नेता अखिलेश यादव आजकल दूसरे दलां के नाराज नेताओ को अपने दल में तेजी से शामिल कर रहे हैं। नाराज हिंदू समाज को मनाने का प्रयास करते हुए मठ मंदिरां का दौरा कर रहे हैं। संत समाज का आशीर्वाद ले रहे हैं तथा अपनी गलतियों के लिये माफी मांग कर प्रायश्चित करने का नाटक कर रहे हैं। अपनी सरकार वापस लाने के लिये अखिलेश यादव को अभी बहुत मेहनत और माफी मांगनी पडेगी किससे-किससे वह माफी मांगेगे? वह मठ-मंदिरों में जा रहे हैं, संत समाज से आशीर्वाद मांग रहे हैं लेकिन अभी उनका कटटर मुस्लिम तुष्टिकरण का रवैया नहीं छूटा हैं उनका कट्टर मुस्लिम वोटबैंक के प्रति प्रेम उसी तरह दिखलायी पड़ रहा है।
अब उन्होंने एक नयी प्रकार की राजनीति शुरू कर दी है जिसमें वह यादव- निषाद गठजोड़ को मजबूत बनाना चाह रहे हैं। सपा ने अब महापुरूषों के नाम पर दलितों को जोड़ने के लिए अभियान शुरू कर दिया है। वह पार्टी जिसने कभी भी महात्मा फुले व बाबा साहेब डा. आम्बेडकर जी का सम्मान नहीं किया अब वह उनकी याद में दलितों के सम्मान में दलित दिवाली बनाने की बात कह रही है और अब वह बाबा साहिब वाहिनी बनाने की भी घोषणा कर रही है। समाजवादी नेता अखिलेश यादव की आज इन दो घोषणाओं की तीखी आलोचना भी जा रही है। सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि सपा नेता ने जिस प्रकार से दलित दिवाली मनाने का ऐलान किया है वह बाबा साहेब और दलित समाज का अपमान है। दलित दिवाली को लेकर जिस प्रकार की शब्दावली का उपयोग यिका गया है  वह बहुत ही आपत्तिजनक है भी तथा इस शब्द के लिए समाजवादी पार्टी को दलित समाज से माफी तो मांगनी ही चाहिए। बाबा साहब संविधान निर्माता हैं और वह सभी जाति, वर्ग और  पूरे देश के हैं। समाजवादी पार्टी ने बाबासाहेब का बहुत बड़ा अनादर किया है , आज बाबा साहेब के कारण ही दलित समाज व सामज के पिछड़े, अतिपिछडे समाज के जीवन में नया सवेरा उदित हुआ है तथा आज वह यदि सम्मान का जीवन जी रहे है तो उसके लिए डा. अम्बेडकर का दिया हुआ संविधान ही है। देश की ऊंची जातियां भी बाबासाहेब का सम्मान करती हैं और सवर्ण समाज के लोग भी उनकी जयंती के अवसर पर उनको याद करते हैं। सोशल मीडिया पर दलित समाज के लोग भी दलित दिवाली की आलोचना कर रहे हैं। दलित समुदाय के लोगों का कहना है कि बाबा साहे ब भीमराव अम्बेडकर वैश्विक छवि वाले व्यक्तित्व हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव दलित दिवाली का ऐलान कर उन्हें एक विशेष वर्ग तक ही सीमित कर रहे हैं। बाबा साहेब युगपुरूष हैं। इसलिए उन्हें किसी एक समाज तक सीमित करना ठीक नहीं लोग कह रहे हैं कि आप पढ़े लिखे हैं, आपके मुंह से यह अच्छा नहीं लगता आपको माफी मांगनी चाहिए यह अपमान है संविधान निर्माता का। बाबा साहेब ने पूरे जीवन भर जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ संघर्ष किया। सपा की सबसे बड़ी आपत्तिजनक बात यह है कि वह एक टिवट में कह रहे हैं कि भाजपा के राजनीतिक अमावस्या के काल में संविधान खतरे में है और बाबा साहेब ने स्वतंत्र रोशनी दी थी। इसलिए वह दलित दिवाली बनाने का आहवान करती है। यह पूरा टिवट समस्त हिंदू समाज का घोर आपमान कर रहा है।
आज बीजेपी के ही शासनकाल में दलित समाज का उत्थान और विकास हो रहा है तथा बीजेपी के कई सांसद और विधायक तथा महापौर एवं पार्षद तथा संगठन में काम करने वाले कई पदाधिकारीगण भी दलित व पिछड़े समाज से आते हैं। समाजवादी पार्टी दलितों को केवल और केवल वोटबैंक के नाम पर अपना गुलाम बनाकर रखना चाह रही है। सपा का दलित प्रेम केवल दिखावटी लग रहा है।
बीजेपी सांसद बृजलाल ने दलित दिवाली और दलित वाहिनी पर सपा मुखिया से तीखे सवाल पूछकर उन्हें कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि समाजवादी पार्टी ने पदोन्नति में आरक्षण का संसद में विरोध क्यों किया था ? सपा ने अपने सांसद आजम खां को दलितों की जमीन पर कब्जा करने से क्यों नहीं रोका ? उन्होंने बताया कि अखिलेश यादव की सरकार ने ही जनवरी 2015 में प्रदेश में करीब दो लाख दलितों को अपने पद से डिमोट कर दिया था। जो दारोगा था वह सिपाही बना दिया गया। तब दलितों का सम्मान सपा को याद नहीं आया।  गाजियाबाद में आजम खां ने बाबा साहब को भू माफिया कहते हुए उनका मजाक उड़ाया था तब अखिलेश मंच पर बैठे तालियां क्यों बजा रहे थे ? जब समाजवादी सरकार सत्ता में आती है तब ग्रामीण क्षेत्रों में मुस्लिम समाज के गुंडे दलित, पिछड़ी और अतिपिडछी समाज की युवतियों पर अत्याचार करते हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है। सपा का यह दलित वोटबैंक का प्रेम बसपा को झटका देने के लिए अधिक है। दलित चिंतक डा. चरण सिंह लिसाणी कहते हैं कि सपाइयों को उम्मीद है कि दलित महापुरूषों की जयंती मनाने से दलित वोट हासिल कर लेंगे। यह इतना आसान नहीं है क्योंकि दलितां में एक बड़े वर्ग को बीजेपी की नीतियां पसंद आ रही हैं। बाबा साहेब कभी किसी दल के नहीं थे उन्होंने कोई विशेष दल का गठन नहीं किया अपितु संविधान सभा की बैठकों में संविधान के कुछ प्रावधानों को लेकर उनके तत्कालीन पीएम नेहरू जी व कांग्रेस के साथ गंभीर मतभेद भी हो गये थे। कांग्रेस पार्टी ने तो कभी अंबेडकर व दलितों का सम्मान नहीं किया । आज 70 साल राज करने के बाद भी कांग्रेस पार्टी ने उनके नाम से कोई भी बड़ा काम नहीं किया। देश की हर योजना में केवल गांधी और नेहरू का ही योगदान गाया जाता रहा है। यही कांग्रेस की दलित नीति रही है केवल बांटों और राज करो। आज वहीं कांग्रेस पार्टी व विपक्षी दल एक बार फिर दलित व आंबेडकर जी पर नकली प्रेम दर्शा रहे हैं। प्रदेश में दलितवाद को लेकर बहुत राजनीति होती है लेकिन अभी तक अंबेडकर जी को अपना नायक मानने वाले सपा व बसपा जैसे दल सरकारी कार्यालयों में उनकी तस्वीर तक नहीं लगा सके थे। जितना काम पीएम मोदी की सरकार ने अंबेडकर जी व अन्य दलित पिछड़े वर्ग के नेताओं के सम्मान के लिये किया है उतना काम किसी और ने नहीं किया है। यही कारण है कि आज सपा व बसपा को भाजपा पसंद नहीं आ रही है। डा. अम्बेडकर जी के पंच तीर्थों को विकसित करने का काम पीएम मोदी ने ही किया।  
एक बात और सपा नेता अखिलेश यादव ने वर्ष 2015 में वाराणसी में हुए लाठीचार्ज की घटना पर स्वामी अवमुक्तेश्वरानंद सरस्वती से माफी मांगकर उनका और जगदगुरू शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का आशीर्वाद लिया। संतो से उन्हाने जिस प्रकार से माफी मांगी है वह केवल दिखावा है। हिंदू समाज का हर नागरिक दोनों संतो को अच्छी तरह से पहचानता है तथा इन लोगोंं की हिंदू समाज में कोई विशष महत्ता भी नहीं है। दोनों ही संत राम मंदिर के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं।
अगर समाजवादी नेता अपना प्रायश्चित करना चहते हैं तो वह सबसे पहले अपने पिता मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में अयोध्या में हिंदू कारसेवकों के नरसंहार के लिए समस्त हिंदू समाज से माफी मांगें तथा अयोध्या को वह दिल से श्रीराम मंदिर मानें और वहां जाकर दर्शन करें। साथ ही अब वह काशी विश्वनाथ -ज्ञानवापी विवाद और मथुरा के विषय में अपने स्पष्ट विचार व्यक्त करें। सपा मुखिया अखिलेश यादव सत्त पाने के लिए वर्तमान समय में अंधकार और अहंकार की डुबकी लगा रहे हैं तथा उनकी बयानबाजियों से पता चल रहा है कि वह मानसिक रूप से काफी कुंठित और बैचेन हो गये हैं। सत्ता पाने के लिए उनका राजनैतिक स्तर गिरता ही जा रहा है तथा वह दोगलेपन और भ्रम का शिकार होते जा रहे हैं। कोरोना महामारी पर भी वह विकृत मानसिकता वाली राजनीति कर रहे हैं।

( उपर्युक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो। )

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