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पटेल भारत के प्रमुख राष्ट्र निर्माता हैं


 
 
हृदयनारायण दीक्षित
आईपीएन। सरदार पटेल की जन्मतिथि पर समूचे देश में उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। इस अवसर पर अनेक आयोजन हुए हैं। राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में भी समूचे देश ने विभिन्न आयोजन किये, लेकिन नई दिल्ली से प्रकाशित संडे नवजीवन (31 अक्टूबर, 2021) में एक लेख में उन्हें कमतर बताने की कोशिश की है। अरूण शर्मा के इस लेख में कहा गया है, “सरदार पटेल ने राजे-रजवाड़े को आजादी बाद के भारत में शामिल करने में बड़ी ही अहम भूमिका निभाई, लेकिन अकेले उन्हें ही इसका श्रेय नहीं दिया जा सकता। उनके तेज-तर्रार सेक्रेटरी वी॰पी॰ मेनन और तब के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटेन को भी इसका श्रेय दिया जाना चाहिए। वी॰पी॰ मेनन ने अपनी संवैधानिक-वैधानिक विशेषज्ञता से एकीकरण की पटकथा लिखी तो माउंटबेटेन ने बड़ी सूझ-बूझ के साथ रजवाड़ों को इसके लिए राजी किया।” मेनन ने अपनी पुस्तक ”द स्टोरी ऑफ इन्टीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स‘ में लिखा है कि उन्होंने सरदार पटेल को दिए वादे को कैसे पूरा किया और कैसे भारत में राजे-रजवाड़ों को शामिल करने का काम पूरा हो सका।“ लेख के अनुसार लॉर्ड माउंटबेटेन ने मेनन के नाम का प्रस्ताव एक प्रांत के गवर्नर के लिए किया था, लेकिन सरदार पटेल के आग्रह पर उन्हें नवगठित मंत्रालय मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट्स में सचिव का पद संभालने की पेशकश की गई। इस विभाग का मंत्री सरदार पटेल को बनाया गया था। मेनन ने लिखा है, ”मैंने उन्हें याद दिलाया कि उनसे पहली बार मिलने के बाद ही मैंने तय कर लिया कि सभी महत्वपूर्ण संवैधानिक घटनाक्रमों पर उनसे सलाह-मशविरा करने की हरसंभव कोशिश करूंगा। मैंने यह उल्लेख किया कि यह उनका प्रबल समर्थन ही था। अब जबकि हमें मंत्री और सचिव के रूप में काम करना था, मुझे पूरा यकीन नहीं था कि हम एक साथ कितनी दूर चल पाएंगे।“ इस पर सरदार ने कहा कि यह सवाल ही नहीं उठता। मैंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस नेताओं को सिविल सेवा के लोगों पर उतना भरोसा नहीं है। उन्होंने जवाब दिया कि यह डर निराधार है। कहा कि इसके पहले सिविल सेवा के लोगों के प्रति नेताओं का जो भी रूख रहा हो उन्हें भरोसा है कि आगे हर कोई मिलजुलकर काम करेगा। 
सारा देश सरदार पटेल को राष्ट्रभाव की निष्ठा के लिए आदर देता है, लेकिन इस आलेख में किसी को दोषरहित मानना मानव स्वभाव के विपरीत बताया गया, ‘अगर हम किसी को दोषरहित बताते हैं तो ऐसा कहना आधारभूत मानव स्वभाव के विपरीत है। लौह पुरूष वल्लभ भाई पटेल भी इसके अपवाद नहीं थे। आरएसएस और अन्य उग्रवादी समूहों का आकलन करने में उनसे गलती हो गयी।‘ लेखक के अनुसार वह दोषरहित नहीं थे। लेखक ने अफसोस जाहिर किया है, ‘काश सरदार पटेल आरएसएस के पाक-साफ व्यवहार का असली चेहरा देख पाते और उनके साथ पेश आने मे उतने ही कठोर होते।‘ सच यह नहीं है। पटेल भारत के प्रमुख राष्ट्र निर्माता हैं। राष्ट्रीय एकीकरण और सांस्कृतिक राष्ट्रभाव के सूत्रधार हैं। वह महात्मा गंाधी के वास्तविक सहयोगी थे। कांग्रेस के अधिकृत इतिहासकार डॉ॰ पट्टाभि सीमा रमैया ने लिखा है, ‘जब गांधी जी की तैयारी चल रही थी, वल्लभ भाई आगामी अग्नि परीक्षा के लिए देशवासियों को प्रेरित करने के लिए अपने नेता से पहले ही चल दिए। .............जब वल्लभ भाई गांधी जी के आगे चल रहे थे तब सरकार को उनमें जॉन दी बैपटिस्ट की छवि दिखाई दी, जो लगभग 1900 साल पहले ईसा मसीह के अग्रगामी बने थे।‘ पटेल की तुलना जर्मनी एकीकरण (1872) के प्रमुख नेता बिसमार्क से भी की जाती है। बिसमार्क ने युद्ध के जरिए जर्मनी का एकीकरण किया था, लेकिन पटेल ने अपनी संगठनात्मक योग्यता, क्षमता, सूझ-बूझ और दृढ़ता से भारत का आधुनिक मानचित्र गढ़ा था। राष्ट्र निर्माण का कार्य दृढ़ता मांगता है। इस कार्य में ढीला-पोली नहीं चलती है। आत्मसम्पर्णकारी समझौते भी नहीं चलते। पटेल ने संविधान निर्माण के समय भी अद्भुत दृढ़ता दिखाई। वह संविधान की अल्पसंख्यक समिति के भी सभापति थे और प्रान्तीय संविधान समिति के भी। संविधान सभा में अल्पसंख्यक समिति की रिपोर्ट पटेल ने ही रखी थी। मजहब आधारित आरक्षण को लेकर संविधान सभा में बहुत तीखी बहस हुई थी। मजहब आधारित आरक्षण को गलत बताया। संविधान सभा (25 व 26 मई, 1949) में उन्होंने मजहबी आरक्षण के समर्थकों को दृढ़तापूर्वक डांटा। ऐसे महान नेता को कमतर करने के प्रयास अनुचित है।
भारत की स्वधीनता अनेक महत्वपूर्ण नेताओं व लाखों लोगों के संघर्ष का परिणाम है। सरदार पटेल इस आंदोलन के प्रमुख स्तम्भ थे। अंग्रेज स्वधीनता संग्राम और विषम अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के दबाव में भी भारत छोड़ने को विवश हुए। ब्रिटिश संसद ने जुलाई 1947 में, ‘भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया था। इस अधिनियम में भारत व पाकिस्तान दो देश थे।‘ देशी राज्यों को अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में मिलने अथवा स्वतंत्र राज्य बने रहने की छूट थी। अंग्रेजों ने भारत का विभाजन ही नहीं किया, छोटे-छोटे 562 देशी राज्यों को भी अलग हो जाने का अवसर दिया। पटेल ने सभी राज्यों और रजवाड़ों को सूझ-बूझ के साथ भारतीय राष्ट्र राज्य का हिस्सा बनाया। पटेल के कौशल से राष्ट्र का एकीकरण पूरा हुआ। कश्मीर का मामला अटका हुआ था। पाकिस्तानी कबायली फौजों ने हमला किया। माउंटबेटेन कश्मीर में भारतीय फौज भेजने के खिलाफ थी। माउंटबेटेन और पटेल की बहस भी हो गयी। पं॰ नेहरू ने 2 दिसम्बर, 1947 के दिन कश्मीर का प्रभार पटेल से छीनकर अपने हाथ में ले लिया। आयंगर कश्मीरी मामलों के सलाहकार बने। सरदार ने 23 दिसम्बर, 1947 मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। कश्मीर समस्या लम्बी खिंची। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संविधान अनु॰ 370 का खात्मा किया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ राष्ट्र निर्माण में संलग्न अखिल भारतीय संगठन है। पटेल इस संगठन के अच्छे कार्यों के समर्थक थे। उनमें आग्रही राष्ट्रभाव था। दृढ़ इच्छाशक्ति थी। वह प्रेरक थे और आज भी हैं। उनका स्मरण अनुसरण समूचा भारत कर रहा है। कुछ वर्ष पूर्व आजमगढ़ में हुए सम्मेलन में मुस्लिम पॉलीटिकल कौसिल के प्रमुख तसलीम रहमानी ने आजमगढ़ के एक सम्मेलन में पटेल को सैकड़ों मुस्लिमों के मारे जाने का जिम्मेदार ठहराया था और उन्हें आतंकवादी बताया गया। कथित प्रगतिशील विचारकों और कांग्रेस ने इस अरोप पर मौन साधे रखा, लेकिन यह नया भारत है। गुजरात के केवड़िया में सरदार की दिव्य भव्य मूर्ति है। वह सारे देश को राष्ट्रीय एकता का संदेश दे रही है। राष्ट्रभाव को आहत करने वाले वक्तव्य असहनीय हैं।
 
( लेखक उ.प्र. विधानसभा के अध्यक्ष हैं। उपर्युक्त आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो। )

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